नवरात्रि के पांचवें दिन की जाती है मां स्कंदमाता की पूजा, आईए जानते हैं आज माता को प्रसन्न करने की पूजा विधि और विधान……..


प्रदेश खबर हरपल ब्यूरो

उत्तराखंड/दिल्ली- भगवान शिव की अर्धांगिनी के रुप में मां ने स्वामी कार्तिकेय को जन्म दिया था। भगवान कार्तिकेय का दूसरा नाम स्कंद है इसलिए मां दुर्गा के इस रुप को स्कंदमाता कहलाया। मां स्कांदमाता की चार भुजाएं हैं। मां भगवान कार्तिकेय को अपनी गोद में लेकर शेर पर सवार रहती है। मां के दोनों हाथों में कमल है। साथ ही स्कंदमाता की पूजा में धनुष बाण अर्पित करने चाहिए।

स्कंदमाता को पसंद है यह भोग
स्कंदमाता को पीले रंग की वस्तुएं सबसे अधिक प्रिय है। माता को केले का भोग लगाना चाहिए। उन्हें पीले रंग के फूल और फल अर्पित करने चाहिए। स्कंदमाता को आप चाहे तो केसर की खीर का भोग लगा सकते हैं। साथ ही मां को हरी इलायची भी अर्पित करके लौंग का जोड़ा चढ़ाएं।

स्कंदमाता का प्रिय रंग
स्कंदमाता की पूजा में पीले रंग के वस्त्र पहनने चाहिए। आप चाहे तो सुनहरे रंग के वस्त्र भी पहन सकते हैं। साथ ही स्कंदमाता को भी इसे रंग के वस्त्र अर्पित करें।

मां स्‍कंदमाता का ध्यान मंत्र

सिंहासना गता नित्यं पद्माश्रि तकरद्वया।
शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी।।

स्कंदमाता की पूजा का विधान

रोजाना की तरह सुबह सूर्योदय से पहले उठकर स्नान कर लें और पूजा स्थल को गंगाजल से शुद्ध कर लें।

इसके बाद लकड़ी की चौकी पर पीले रंग का कपड़ा बिछा लें और स्कंदमाता की मूर्ति या फिर तस्वीर को स्थापित करें।

फिर स्कंदमाता को पीले फूल से श्रृंगार का सामान अर्पित करें। साथ ही पीले रंग के वस्त्र भी पहनाएं।

इसके बाद स्कंदमाता का ध्यान करते हुए उनके मंत्र का 108 बार जप करें और उन्हें पान का पत्ता, इल्याची, लौंग आदि चीजें अर्पित करें। फिर दुर्गासप्तशती का पाठ करें।

इन सबसे बाद स्कंदमाता की आरती करके सभी को प्रसाद वितरीत कर दें। अंत में मां के सामने शिश झुकार आपकी जो भी मनोकामना हो उसे बोंलें।

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